Thursday, May 6, 2010

महाभिनिष्क्रमण

आज मन में कई प्रतिद्वंदी नज़रियों का मंथन चल रहा है , सो अगर नीचे लिखी बातें सिलसिलेवार ढंग से लिखी न दिखें तो क्षमा चाहूँगा |
दुर्योधन के आंसू
महाभारत के आखिरी दिन , टूटा सा , कराहता दुर्योधन सिसक रहा है | मृत्यु पास है , आज आँखों का पानी किसलिए है ?
दुनिया , वे कहते थे , एक रंगमंच है , लीला -निमेष | आज द्वापर युग के विनाशकारी युद्ध के बाद ही अहसास होता है कि रंगमंच का पर्दा खींचता हुआ नीचे आ रहा है | वो द्वेष , वो मित्रता , वो अन्याय, वो कपट , वो प्रेम - हर एक ढांचा समय की लहरें निगल रही हैं | आज जब इस नाटक पर पर्दा गिरेगा तो सबके सब साहित्य , नाटक और इतिहास के किरदार रह जायेंगे | हाँ, सबके सब , कलाकारों की सूची में एक के नीचे एक - धृतराष्ट्र , युधिष्ठिर, पांचाली , भीम , दुर्योधन , श्रीकृष्ण , अर्जुन... | कुछ भी सदा के लिए नहीं रहा , न भीम से इर्ष्य , न कर्ण से मित्रता , न द्रौपदी के प्रति वासना | वो जो सागर की तरह अथाह भावनाएं थीं, अब किताबों के चाँद पन्नों में बांध कर रह गयीं |
दुर्योधन रोया था - अपने अपमान के लिए नहीं , न पछतावे की ग्लानि से ; सिर्फ एक नाटक के अंत के लिए | कहीं एक रेगिस्तान में एक और पर्दा गिरा | आज इस अंतिम समय भी सब मीठा नहीं लग रहा , पर मुझे कडवाहट और खट्टेपन की प्यास है| मैं भी शकुनि की तरह छल करना चाहता हूँ, भीष्म की तरह प्रतिज्ञाओं पर खरा उतरना चाहता हूँ , कर्ण और एकलव्य की भांति अन्याय की टीस सहनी है , वीरानी में बैठे किसी महापुरुष से गीता सुननी है |मैं सिसकता हूँ , इस बनावटी दुनिया की भावनाओं के लिए , आवेश के लिए - जिसका समय मखौल उड़ा रहा है |

Friday, September 18, 2009

इत्तेफाक की मौत

जब आप छोटे थे, तब आपके घर एक लाल बॉल हुआ करती थी | कहाँ से आई ? आप हरदम सोचा करते थे | छोटी सी प्लास्टिक की बॉल ... सवेरे सावा छः बजे , आप अपने छोटे भाई के तकिये के नीचे से वो बॉल निकाल के स्कूल की ओर ऐसे भागते थे, जैसे कोई जरूरी परीक्षा हो|
सात दस की क्लास के लिए , छः चालीस पे स्कूल में | उनका घर पास में ही हुआ करता था , शायद रिक्शे से आती थीं | बैग से बॉल निकाल के आप अपने दोस्तों को स्कूल के प्रेयर मैदान में बुलाया करते थे- वहीँ जिसके सामने वाली बालकनी में वो बैठा करती थीं|

जी नहीं, आप को फुटबॉल का घंटा भी नहीं आता था | आज तक मोहल्ले के लिए भी नहीं खेले, वो तब जबकि आपका मौसेरा भाई स्कूल की टीम का कप्तान हुआ करता था और आप रोज़ उसे इसी उम्मीद से अपने लंच बॉक्स के सारे आलू पराठे खिलाया करते थे और खुद अचार की गुठली चूसते थे | यहाँ भी प्रेयर मैदान में प्लास्टिक-बॉल फुटबॉल टूर्नामेंट में आप पहले बैकी , फिर goalie और अंत में रिज़र्व खिलाड़ी बन गए - जिससे की मैदान के किसी भी साइड आपकी टीम हो, आप उनकी साइड पे पहरा देते रहें |
जब 11 जोड़ी टांगें आपकी बॉल का कचूमर निकाल रही होती थीं, आप सफ़ेद शर्ट और स्कर्ट में बैठी उस लड़की को नीचे से ऊपर देख रहे होते थे | नहीं नहीं , आपके दिमाग में कोई गन्दगी नहीं थी - आपने अभी तक बबलू भैया की दुकान से वो दस रुपये की मैगजीन खरीद के पढ़नी चालू नहीं की थी | अभी तो बस उन्हें देख के आपके दिमाग में "ताल " के गाने बजते थे|

साल गुज़रे , आप गलत संगत में पड़ गए| किसी के बहकावे में आके पढ़ाई कर ली और इंजिनियर बन भी गए! अगले चार साल , आपने अपने लैपटॉप पे हिंदी-अंग्रेजी की सारी Romantic फिल्में उठाकर उनकी pick up lines याद की | उनकी तो खोज खबर भी नहीं रखी | बस एक इत्तेफाक आपके दिमाग में आता था :
" एक दिन , यहाँ से बाहर निकलने के बाद , किसी बारिश के दिन ,किसी मेट्रो की भरी सड़क पे... आप ऑफिस से लौटते वक़्त उनसे इत्तेफाक से मिलेंगे | उनके सामने जाके उन्हें वो सब बातें बताएँगे जो आपको आज भी उनके बारे में याद हैं, उनका फेवरेट रंग, उनकी पसंदीदा आइस-क्रीम ... अपना सोने जड़ा क्रेडिट कार्ड लहरायेंगे और उनको सबसे रोमांटिक रेस्तरां में ले जायेंगे | कार होगी, जॉब होगी और उनको बोर भी नहीं करेंगे | आप उनके सामने हर वो डैलोग दोहराएंगे जो पॉल निकोल्स ने जेनिफर हेविट को " If Only " में और शाहरुख़ ने रानी को चलते चलते में कहे थे | अरे , कुछ भी हो आपने इतनी मेहनत की है , इतना इंतज़ार किया है - यहाँ कोई न मिली तो क्या? बाहर आपसे अच्छा कोई है क्या? वो इत्तेफाक भी होगा और वो भी आपकी होंगी |
दिल में ये तो तमन्ना थी कि कुछ भी हो - इतने उल्लू नहीं हैं कि पड़ोस वाले भैया की तरह शादी के दिन भी लाल वाली कुर्सी पर बैठे हुए बगलें झांकते रहें ? बिना कोशिश किये जवान मैदान नहीं छोडेगा ! और वो तो मामूली फार्मा वाले थे, आप इंजिनियर हैं - समाज में आपकी तस्वीर अख़बार में छपती है | शायद आपको पता नहीं था कि उसी दिन आप अपने जान-पहचान वाली हर लड़की के लिए इंजीनियरिंग वाले भैया हो गए थे| आपकी भावनाओं की कद्र किसने की है?
एक दिन वो इत्तेफाक हुआ!
बारिश हो रही थी | 14 घंटे तक आपको रगड़ने के बाद आपकी कंपनी कैब ने आपको एक अमेरिकन फ़ूड चेन के सामने फेंका और अल्टीमेटम दिया कि आधे घंटे में पेट में खाना ठूस के तैयार रहना , हम यहीं रहेंगे | आप अन्दर गए, उनको देखा, पहचाना और सहम गए | जिस ज़मीन पे आप घर बनाना चाहते थे, उसपर तो बिल्डर का बोर्ड लग गया था - हाथ में अंगूठी ! बिल्डर भी सामने खड़ा था| उसके सामने आप ऐसे लग रहे थे जैसे अर्नाल्ड के बगल में गली वाली रामलीला का हनुमान| चुपचाप बिना कुछ बोले बगल वाली सीट पर बैठे और एक यूथ मैगजीन खोली | आप हरदम सोचते हैं की ये यूथ मैगजीन पढता कौन है?
लोग कैसी कैसी चीज़ों की बात करते हैं , रिलेशनशिप डेटिंग ब्रेकप फ्लिंग वगैरह वगैरह | ये सब दूसरे ग्रह के लोगों के लिए छपती होंगी , जब आप इस नौकरी से निकलेंगे या निकाले जायेंगे , (जिसका ज्यादा चांस है ) आप केवल इंजिनियर मर्दों के लिए यूथ मैगजीन निकालेंगे | सोचा था कि कॉलेज से निकलेंगे तो ये करेंगे वो करेंगे, आप इमरान हाश्मी होंगे.. अरे इमरान हाश्मी ने दस साल कैमरा चलाया है और आपने चार साल theodolite ! आप हारे हुए कुत्ते की तरह अपना सोने जड़ा क्रेडिट कार्ड मुंह में दबा के कैब में बैठ जाते हैं | सब कहानियां झूठी हैं|
हिम्मत देखिये ! आपने हिम्मत नहीं हारी | आप कई बार कभी अलविदा न कहना देखते हैं , सोचते भी हैं अरे इसमें भी क्या बुराई है | आगे दस सालों में जो हुआ , वो एक डरावना सपना था | अरे फार्मा वाले भैया तो बगलें झांकते थे , आपने तो उस दिन कला चश्मा ही पहन लिया था ! आगे जो हुआ, बस सब भगवान की मर्ज़ी थी |
एक दिन आपके लड़के ने आपको जगाया - कोई आपसे मिलने आई है | वो आपकी पत्नी के साथ बैठी थीं , आपको देख के उन्हें लगा कि शायद गलत पते पर आ गयी हैं | आप बिलकुल दसविदानिया के विनय पाठक लग रहे थे , पहचानना मुश्किल था | उन्होंने मुस्कुराकर आपके बेटे को एक गिफ्ट पैकेट दिया | कहा - " बेटा ये तुम्हारे लिए ! " आपने सोचा- काश ! पहला शब्द सच्चा होता | आप अन्दर गए |
देखा, बेटा पैकेट खोल रहा है | उसमे से एक प्लास्टिक की बॉल निकली , एकदम लाल | आपका इत्तेफाक मर चुका था | और आपको पता चल गया था कि वो बचपन वाली बॉल आपके घर में कहाँ से आई थी |